Sunday, October 16, 2011

भागो अन्ना, सेना आई



चंदन राय
प्रशांत भूषण पर हमला सीधे-सीधे हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों पर हमला है। आप उनके विचारों से सहमत हों या नहीं, लेकिन उन्हें सार्वजनिक मंच से अपनी बातें रखने का पूरा हक है। स्वतंत्र और विचारों में विभिन्नता से ही लोकतंत्र के पाए मजबूत होते हैं। विचारों के बीच निरंतर संवाद से ही स्वस्थ विचार सामने आते हैं और विकास के नए रास्ते खुलते हैं। प्रशांत के कथित दुस्साहस भरे बयान को अन्ना टीम ने सिरे से नकार दिया है। उन्हें इस बात का डर है कि प्रशांत के साथ खड़े होने से भ्रष्टाचार के विरोध में चलाया गया उनका आंदोलन कमजोर होगा। जहां भ्रष्टाचार के मुद्दे पर लोग एकजुट हुए थे, वहीं कथित रूप से देश को तोडऩे वाले इन विचारों से बिखर जाएंगे। हालांकि कांग्रेस या अन्य विरोधियों ने इस आंदोलन को जितना नुकसान नहीं पहुंचाया, उससे ज्यादा उनके साथियों ने ही इसकी शुचिता को भंग किया है। अब अन्ना मौन पर चले गए हैं। अनर्गल बयानों के कारण आफत को दावत देने से बेहतर है मौन ही रहा जाए। संघ अपने दड़बों से बाहर निकल आया है। सुरेश भैया जी के बयान के बाद अब यह बात मान लेनी चाहिए कि सांप्रदायिक तत्वों ने इस आंदोलन में खुलकर अपना खेल खेला था। क्या हमारे समाजवादी साथी सुरेश भैया जी की बात सुन रहे थे, जब वे खाकी निक्कर के तले अन्ना आंदोलन चलाए जाने की बात कर रहे थे। दूसरी तरफ, शिव सेना महाराष्ट्र से बाहर नहीं निकल सकी तो उसने श्री राम सेना जैसे सांस्कृतिक, सांप्रदायिक गुंडों की फौज खड़ी कर ली। अब शिवसेना मार्का ये गुंडे सीधे आपकी सोच पर हमला करते हैं। आपको डराते हैं, आपके विचार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर चोट करते हैं।
हालांकि देश में एक बड़ा तबका प्रशांत भूषण के विचारों का समर्थन करता है। सरकार की नजर में ऐसी सोच रखने वाले अलगाववादी हैं। सरकार अलगाववादियों और आतंकवादियों में ज्यादा फर्क नही करती। उनकी नजर में राज्य से स्वायत्तता की मांग करने वाला समाज भी इसी श्रेणी में खड़ा नजर आता है। डर तो ये भी है कि तेलंगाना, हरित प्रदेश, बुंदेलखंड, पूर्वांचल की मांग करने वालों को भी सरकार उसी कतार में न खड़ी कर दे। यह कोई अतिशयोक्ति नहीं, बल्कि सरकार की सोची-समझी चाल है। नहीं तो तेलंगाना की हिंसक होती आवाज को बार-बार अनसुनी करना सरकार के लिए इतना आसान नहीं होता। सरकार को चाहिए-आंतरिक उपनिवेश, ताकि पिछड़े राज्यों का शोषण जारी रहे। इन्हीं राज्यों के शोषण पर ही समृद्धि के द्वीप खड़े किए जाते हैं। ऐसे पिछड़े राज्यों की बदौलत ही देश में आंतरिक साम्राज्यवाद के झंडे गाड़े जाते हैं।
खैर, अन्ना टीम की मंशा स्पष्ट है। प्रशांत भूषण अपने बयानों के कारण आज अलग-थलग पड़ गए हैं। हो सकता है कल उन्हें टीम से भी बाहर कर दिया जाए। पहले स्वामी अग्निवेश पर विश्वासघात का आरोप, फिर जस्टिस संतोष हेगड़े से असहमति और फिर अब निशाने पर वकील प्रशांत भूषण। अरविंद, टीम अन्ना में अपनी मर्जी चलाने में काफी हद तक सफल रहे हैं। हो सकता है उनका अगला निशाना मैडम किरण बेदी हों। इस आंदोलन के शीर्ष पर अकेले अरविंद खड़े नजर आना चाहते हैं क्योंकि टीम अन्ना जैसे शब्दों से उनका मतलब नहीं सधता। इसलिए एक-एक कर लोग निपटाए जा रहे हैं। हाल में ही अरविंद ने कहा था कि अन्ना तो संसद से भी ऊपर हैं। अब कैसे हैं, क्यों हैं-यह तो वही जानें, हां देश की जनता इससे इत्तेफाक नहीं रखती। हिसार चुनाव में टीम अन्ना में मतभेद उभरने की आशंका होते हुए भी अरविंद ब्रांड ने कांग्रेस के खिलाफ माहौल बनाने का प्रयास क्यों किया? कपिल सिब्बल के संसदीय क्षेत्र में जनमत संग्रह कराने के क्या मायने थे? क्या वे हिसार, चांदनी चौक के बहाने अपनी राजनैतिक हैसियत नहीं आंक रहे थे। अब अगर सत्रह प्रतिशत वोट भी कांग्रेस को मिलते हैं, तो इसका मतलब साफ है कि इतने लोगों पर अन्ना फैक्टर का असर नहीं था। यानी दूसरे अर्थ में लें तो पूरा देश अन्ना के साथ नहीं। यहीं अन्ना टीम की विश्वसनीयता पर खतरा उत्पन्न होता है, जिसकी ओर संतोष हेगड़े इशारा कर रहे थे। मीडिया से जानकारी मिली कि चुनाव क्षेत्र में एक सीडी वितरित की गई है, जिसमें अन्ना लोगों से अपील कर रहे हैं कि वे कांग्रेसियों को वोट न दें। मेरी आंखों के सामने मुस्लिम इमामों का फतवा और आतंकियों की सीडी का नजारा घूमने लगा, जो चुनावी मौसम में जारी किए जाते हैं। लोकतंत्र में खुलकर यह संदेश दिया जाता है कि आपको किसे वोट देना है और किसे नहीं, जैसे लोकशाही इनकी बपौती हो और लोग उनके जरखरीद गुलाम।

कुछ लोग प्रशांत के बयान को देश तोडऩे वाला बता सकते हैं। लेकिन आप एक प्रदेश को बिना उनका विश्वास जीते हथियार की बदौलत कब तक अपने साथ रख सकते हैं। खैर, प्रशांत को आगे बढक़र एक बात और करनी चाहिए थी। वे पाक अधिकृत काश्मीर में भी जनमत संग्रह की बात करते। वे पुनून पंडितों को घाटी में वापस लाने की भी बात करते। वे सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए सरकार को प्रयास तेज करने के लिए भी कहते। लेकिन अन्ना टीम ने श्री राम सेना के आगे घुटने टेक दिए हैं। उनमें इतना भी नैतिक साहस नहीं कि एक ईमानदार और साहसी आदमी के बयान को सही ठहरा सकें। इस आंदोलन में उनका सब कुछ दांव पर लगा है। अन्ना आंदोलन के चाणक्य अरविंद को आनन-फानन में रालेगण सिद्धि बुलाया गया, ताकि विचार-विमर्श कर एकमत बनाया जा सके। तय हुआ प्रशांत के बयान से दूरी बना ली जाए, नहीं तो जनता की भावनाएं भडक़ जाएंगी। यों भी आंदोलन में मिले जन-समर्थन से बौखलाए अन्ना सदस्य बेतुके मुद्दों पर अनर्गल प्रलाप कर जनता की नजरों में हलके होते जा रहे हैं।

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